Thursday, April 23, 2020

लाल छज्जा


मेरे घर के बरामदे के ऊपर
एक लाल रंगा हुआ ईटों का छज्जा है
जिसपर पिछले कुछ तीन महीनों से
दो प्यार में डूबे मैनों का कब्ज़ा है
अपनी आंखों से देखा मैंने
कैसे डालियों से, कभी रस्सी के टुकड़ों से
और कभी बिजली के पुराने कटे तारों को
जोड़ कर एक गोल और गहरा
उन्होंने बड़े एकसार सा शानदार घर बनाया है।


कई दफा सोचा इसे हटा दूं
मेरा घर है, आखिर क्यों इन्हे पनाह दूं?
बदबू आती है, फर्श भी गंदा रहता है
सुबह सूरज की किरणों के साथ
इन दोनों का बेसुरा शोर भी घर में घुसता है
कभी कहीं हड्डियों के टुकड़े पड़े होते है, और कभी
बिल्लियों का झुंड बरामदे के नीचे खड़ा दिखता है।


पर फिर कभी जब
इनके घोसले को खाली देखता हूं
दिल मानो थोड़ा बैठ सा जाता है
अनजाने में ही इनकी राह तख्ता हूं
दो बेजुबान पंछी कैसे इतने करीबी हो गए
अपनी थाली में भी इनकी आधी रोटी अब अलग रखता हूं।


जब कभी दोस्त आते है घर, तो मुझसे कहने लगते है
"उत्तर दिशा में इनका बड़ा शोर रहता है
वास्तु के लिए यह बिल्कुल ठीक नहीं है।"
अगर किराया देती यह दो मैना, तो मैं पाठ करा लेता
दिशाओं के बुरे प्रकोप को ठिकाने लगा देता
प्रकृति ने जो खुद दिया है, उसे भला क्यों हटा दूं
वास्तु ठीक हो भी जाए, इंसानियत की क्या दवा पिलाऊं?


मेरे घर के बरामदे के ऊपर
जो लाल रंगा हुआ इटों का छज्जा है
वह अब हमेशा के लिए
मेरे प्यारे पंछियों का बगीचा है।।


~सौरव गोयल

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