इन रेल की पटरियों ने बहुत कुछ देखा है । 
बाड़ भी देखी है, सूखा भी देखा है । 
कश्मीर की वादियों में कुदरत का करिश्मा देखा है । 
और गुजरात की गलियों में इनसानीयत को रूबरू देखा है ।। 
इन रेल की पटरियों ने बहुत कुछ देखा है । 
कभी प्यार पनपते हुए, कभी जान जाते हुए देखा है । 
इसने कितनो को सफ़र में दोस्त बनते देखा है । 
और कितने ही हमलों में दोस्तों को इसपर जान गवाते देखा है ।। 
इन रेल की पटरियों ने बहुत कुछ देखा है । 
सरकारें भी देखी  है, शासन भी देखा है । 
अंग्रेज़ों को देश लूटते हुए देखा है । 
और भगत-आज़ाद को देश के लिए लुट जाते देखा है ।।  
इन रेल की पटरियों ने बहुत कुछ देखा है । 
आज़ादी की जंग भी देखी है, आज़ाद भारत को लड़ते भी देखा है । 
इसने गाँधी को देश पाने के लिए अनशन करते देखा है । 
और अब अन्ना को देश सुधारने के लिए अनशन करते देखा है ।। 
इन रेल की पटरियों ने बहुत कुछ देखा है । 
सरहदें पार कराते कराते, नयी सरहदें बनते देखा है । 
बंगाल को बांग्लादेश बनते देखा है । 
और पँजाब को पाकिस्तान बनते देखा है ।। 
इन रेल की पटरियों ने बहुत कुछ देखा है । 
आँखें मूँदें, सर झुकाएं देखा है । 
इनमे जो ज़ुबान होती तो यह अपनी दास्तान सुनाते । 
किस तरह देश का इतिहास बनते देखा है ।। 
इन रेल की पटरियों ने सब देखा है, सब देखा है ।। 
~ सौरव गोयल 
 
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