Thursday, August 29, 2024
Naaz
तुम सवेरे की पहले किरण की गर्मी हो,
बारिश में भीगे पत्ते की नरमी हो,
मुस्कान जो लाए अकेलेपन में वह खयाल हो,
दिए की लौ जिस धुन पर नाचे वह अनसुनी ताल हो।
पंछियों के सुबह की चहक हो तुम,
सावन के गीली मिट्टी की महक हो तुम,
तुमसे ही तो दिवाली में खुशहाली है,
तुम ना हो तो हर एक महफिल लगे खाली है।
कलियों में जो रंग भरे वह राज़ तुम हो,
जिसकी ज़िंदगी में आ जाओ उसका नाज़ तुम हो,
शोर कितना भी मेरे रूबरू हो,
जो साफ़ सुनाई दे वह आवाज़ तुम हो।
लंबे सफर के बाद का आराम तुम सा है,
सूखे लबों पर पानी का एहसास तुम सा है,
शराब यूं तो कभी छूता न था,
पर पीने लगा जब देखा उसका नशा भी तुम सा है।
जी रहा था खुश अपने कुएं में मैं,
तेरी बातों ने हटा दी आखों के पर्दों को,
ढूंढता फिरता हूं अब तेरा अक्स हर कहीं,
होश में आने का यह मज़ा भी तुम सा है।
मत कर मेरे ईश्क की नुमाइश इस बाज़ार में,
यहां सिर्फ खोखले वादों का धंधा है,
मुझ जैसा कहां मिलेगा तुझे यहां अब?
सच्चा प्यार भी तो नायाब तुम सा है।।
~सौरव गोयल
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