कुछ बारिश में भीगते सपनें ,
कुछ हवा के झोंकों में झूमती परछाइयाँ ,
कुछ बिजलियों की चमक से काँपते रूह ,
कुछ पेड़ की छाँव में हसीन गुस्ताखियाँ ।।
कुछ मौसम का था प्यारा असर ,
कुछ गीली मट्टी की खुशबू का भी था नशा बड़ा ,
कुछ उनकी गहरी आँखें भी कुसूरवार थी ,
कुछ हमपर भी था चाहत का सुरूर चढ़ा ।।
कुछ लफ्ज़ उन्होंने भी कहे नही ,
कुछ बोलने की चाह हमें भी ना थी ,
कुछ कहे बिना एक-दुसरे को समझ लिया ,
कुछ उन बादलों की गरज में खामोशी ना थी ।।
कुछ उनकी गीली ज़ुल्फ़ें थी हसीन ,
कुछ रात की हवा में भी ठंडक थी ,
कुछ जज़्बात काबू से बाहर हो रहे थे ,
कुछ उनके गीले होंठों में नर्मी थी ।।
~ सौरव गोयल